Saturday, August 15, 2009

कुछ लिखना चाहता हूँ..

काफी दिनों से कुछ लिखना चाह रहा हूँ
लेकिन लिख नहीं पा रहा ...
वक़्त की कमी??
नहीं मेरे पास वक़्त ही वक़्त है..
यह बेनीन्द रातें सबूत है इसकी..
प्यार ने नींद उरा दी??हा हा हा....
नहीं अब येः शब्द बेमायने लगता है..
एक खौफ सा उतर जाता है सोच के भी..
फिर??
पता नहीं..
कोई सोच एक मुकाम तक नहीं पहुच पा रही..
बस चलती रहती है हमेशा..
कोई तलाश ??
शायद..
लेकिन किसकी??
ये नहीं समझ पा रहा..
पहले जब अकेला होता था..
किताबों में कहानियां तलाशता था..
फिल्मो में सचे चरित्र ढूंढता था ..
और नज्मों में रूह की ख्वाय्सें..
अब??
आधी पढी किताबों का ढेर..
झूठी कहानियां, झूठे चरित्र..
और नज़्म??
ख्वाय्सों से डर लगता है अब...

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